अंडमान के समुद्री सीप का टिश्यू कल्चर कर संगमनगरी में बनी लैब में मोती बनाने वाले वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. अजय कुमार सोनकर दुनियाभर के वैज्ञानिकों के शोध का सहारा बन गए हैं। इस साल पूरी दुनिया में प्रकाशित देश-विदेश के विभिन्न वैज्ञानिकों के 372 रिसर्च पेपर में डॉ. अजय के शोध का संदर्भ दिया गया है।
दुनियाभर में चल रहे शोध पर पैनी नजर रखने वाले कैलिफोर्निया स्थित अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान एकेडेमिया ने यह जानकारी दी है। संस्था के अनुसार 372 रिसर्च पेपर में डॉ. अजय के विविध खोजों को संदर्भित किया गया है। मेडिसन, बायोकेमिस्ट्री, सेल बायोलॉजी, इम्यून सिस्टम, मल्टी डिसिप्लिनरी, जूलॉजी, अक्वाकल्चर, मरीन गैस्ट्रोपॉड, टेक्सोनामी आदि के क्षेत्र में रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों ने रिसर्च पेपर तैयार करने में डॉ. अजय के शोध का सहारा लिया है। ताजा उपलब्धि पर डॉ. अजय ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान को बताया कि इस साल मार्च तक 105 रिसर्च पेपर में उनके शोध को संदर्भित किया गया था। तब इसकी जानकारी देने के साथ एकेडियमा ने उन्हें बधाई दी थी। संस्था ने सोमवार को यह आंकड़ा 372 पहुंचने की जानकारी देने के साथ फिर बधाई दी। एकेडेमिया एक ऐसी संस्था है, जो दुनियभर में हो रहे हर शोध पर बारीक नजर रखती है।
मोती से शोहरत मिलने के बाद प्लास्टिक पर किया ब़ड़ा खुलासा
प्रयागराज। डॉ. अजय कुमार सोनकर समुद्री सीप से मोती बनाने वाले देश के पहले वैज्ञानिक हैं। अंडमान के समुद्री सीप का टिश्यू कल्चर वह प्रयागराज लाए और नैनी स्थित अपनी लैब में मोती बनाने का अनूठा कारनामा किया। इससे पहले दुनियाभर में टिश्यू कल्चर से समुद्र तट पर ही मोती बनाई जाती थी। डॉ. अजय ने पहली बार समुद्र से लगभग दो हजार किमी दूर लैब में मोती बनाई। इस उपलब्धि के लिए डॉ. अजय को पिछले साल पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। डॉ. अजय ने इस साल प्लास्टिक से होने वाले नुकसान पर शोध में कई खुलासे किए। डॉ. अजय ने ही दुनिया को बताया कि समुद्र की चट्टानों में प्लास्टिक चिपक गई है। चाय की चुस्की के साथ शरीर में प्लास्टिक का अंश जा रहा है। वह वर्तमान में कैंसर को समाप्त करने के साथ पानी आदि पर शोध कर रहे हैं।