चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश गरीब के 88 वें जन्म दिवस को चकबंदी दिवस के रूप में मनाया गया। इस दौरान उन्होंने कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों से किसान और खेती बाड़ी बचाने और पलायन रोकने के लिए चकबंदी जरुरी है लेकिन दुखद यह है कि इस मसले पर अब तक सरकारों ने बातें तो की लेकिन धरातल पर कुछ खास देखने को नहीं मिला।
कल्जीखाल में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ क्षेत्र के कनिष्ठ प्रमुख अर्जुन पटवाल, पूर्व प्रधानाचार्य राजेंद्र सिंह पटवाल ने किया। इस दौरान वक्ताओं ने पहाड़ी क्षेत्रों में गणेश गरीब के चकबंदी को लेकर अब तक किए गए संघर्ष से सभी को रूबरू कराया। वक्ताओं ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की मांग भी की।
कार्यक्रम के संयोजक जगमोहन डांगी ने कहा कि गणेश गरीब पिछले 44 सालों से चकबंदी के लिए किए आवाज उठा रहे हैं। लेकिन इस दिशा में सरकारों की ओर से कुछ खास नहीं किया गया। चकबंदी आंदोलन के समर्थक शेखरानंद, पूर्व कनिष्ठ प्रमुख अनिल कुमार, जयकृत सिंह पटवाल, रेखा देवी, मंजीता देवी आदि ने भी अपने विचार रखे।
पलायन के पीछे का कारण नहीं जानना चाहते नेता
इस दौरान गणेश सिंह गरीब ने कहा की पर्वतीय क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन का दुखड़ा तो हर राजनीतिक दल का नेता रोता रहता है, लेकिन पलायन के पीछे क्या कारण है। इसके कारणों की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उन्होंने कहा कि नेता स्वयं पहाड़ी जनता के वोट झपट कर खुद मैदान में बस गए हैं। इसलिए उनका सरोकार केवल वोट तक ही तक सीमित रह गया है।
पलायन का एकमात्र लक्ष्य चकबंदी
चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश सिंह गरीब ने कहा की राज्य गठन के इन बीते सालों के बाद भी उत्तराखंडियों को पहाड़ के सुनियोजित विकास के मूल तो दूर आवरण की अवधारणा तक का ढांचा तैयार नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने कहा कि गांव का पलायन रोकना है तो एक मात्र विकल्प चकबंदी ही हो सकती है। कार्यक्रम का संचालन विक्रम पटवाल ने किया।