उत्तराखंड की धामी सरकार के द्वारा राज्य आंदोलनकारी को बड़ी सौगात 10% आरक्षण के रूप में दी गई थी। लेकिन अब हाईकोर्ट में आरक्षण देने को लेकर एक जनहित याचिका दायर हुई है। जिस पर सुनवाई करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से पूछा है कि किस आधार पर राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया गया है। इसको लेकर सरकार को जवाब देना है।
राज्य आंदोलनकारियों के आरक्षण मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर
राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिए जाने को लेकर धामी सरकार ने जहां सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने को लेकर कानून बनाया तो वहीं दूसरी तरफ सरकार के द्वारा दिए गए आरक्षण के खिलाफ एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई है। इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि आंदोलनकारियों को किस आधार पर आरक्षण दिया गया है।
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से मांगा जवाब
उत्तराखंड सरकार को हाईकोर्ट के इस सवाल का जवाब 6 हफ्तों के भीतर देना है। ऐसा नहीं है कि पहली बार किसी सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया हो। बता दें कि पहले भी सरकार के द्वारा राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण दिया गया था लेकिन उसका केवल महज शासनादेश जारी हुआ था जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
धामी सरकार ने विधिवत रूप से राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने को लेकर विधानसभा से विधेयक पास कराया जिस पर राजभवन से मुहर लगी। लेकिन अब हाईकोर्ट में आरक्षण देने को चुनौती दी गई है। हालांकि सरकार की तरफ से महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में याचिका करता के तर्क का विरोध करते हुए सरकार को कानून बनाने की शक्ति का हवाला दिया गया है।
सालों से आंदोलनकारी कर रहे थे आरक्षण की मांग
राज्य आंदोलनकारी वर्षों से आरक्षण दिए जाने की मांग कर रहे थे। लेकिन मांग पूरी होते ही मामला हाईकोर्ट में पहुंच गया है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों आरक्षण देने की पक्ष में नजर आ रहे हैं। राज्य आंदोलनकारियों को आरक्षण देने जाने का मसाला बेहद ही चीदा रहा है। हाईकोर्ट के द्वारा जब पहले आरक्षण को खारिज किया गया था। उसके बाद हरीश रावत सरकार के द्वारा आरक्षण दिए जाने का बिल पास किया गया था। लेकिन राज भवन ने उसे सालों तक लटकाए रखा और मंजूरी नहीं दी।
लेकिन सालों बाद धामी सरकार के द्वारा उसे विधेयक को राजभवन से वापस मंगवाते हुए नई सिरे से विधायक को पास करवाया। जिस पर राज भवन ने भी मुहर लगा दी लेकिन अब मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है। ऐसे में अब हाईकोर्ट से आंदोलनकरियों को बड़ी उम्मीदें हैं कि सरकार के द्वारा जो निर्णय लिया गया है उसे पर कोर्ट भी आंदोलनकारियों के पक्ष में मोहर लगाएं।