शहर की कई पहाड़ियां भूगर्भीय दृष्टि से अतिसंवेदनशील होने के बावजूद सरकारी तंत्र व शहरवासी इसे लेकर गंभीर नहीं दिखते। यहां बलियानाला से लेकर शहर के भीतर विभिन्न स्थानों पर हो रहा भूस्खलन भविष्य में बड़े खतरे की चेतावनी दे रहा है, मगर प्रकृति के चेताने के बाद भी शहर में अवैध निर्माण कार्य नहीं थम रहे हैं।
अवैध निर्माण मामले में जिला विकास प्रधिकरण की सुस्ती का फायदा उठाकर अतिक्रमणकारी रातों रात धड़ल्ले से अवैध निर्माण कार्य कर रहे हैं। यहां के मिस्त्री भी अजूबे से कम नहीं, जो रातोंरात अवैध तरीके से आलीशन भवन बनाकर तैयार कर देते हैं। शहर में नये निर्माण कार्य कराने पर प्रतिबंध है। पुराने भवनों की भी मरम्मत तक कराने के लिए विभिन्न विभागों से एनओसी लेकर प्राधिकरण से नक्शा पास कराना होता है।
शहर में बीते एक दशक से असुरक्षित व ग्रीन बेल्ट इलाकों में अवैध निर्माणों की बाढ़ सी आ गई है। यहां अवैध निर्माण कार्यों की शैली भी बेहद नायाब है। दिन में लोहे के गार्डर लगाकर रातों रात टिनशेड तैयार कर लिया जाता है। इसके बाद भीतर ही भीतर ईंट व सीमेंट की चिनाई कर टिनशेड पक्के भवन में तब्दील हो जाता है। कुछ समय बाद टिन का बाहरी आवरण हटा लिया जाता है।
शहर के अधिकांश क्षेत्रों में चल रहे अवैध निर्माण कार्य में सुरक्षा दीवार बनाने के लिए सीमेंट के कट्टे प्रयोग में लाए जा रहे हैं। इन कट्टों में मिट्टी भरकर सुरक्षा दीवार बनाई जाती है। मगर कुछ वर्षों बाद कट्टे खराब होने के साथ ही उसमें भरा मलबा नालों से होते हुए नैनी झील में समाता रहता है। जिससे झील की सेहत भी बिगड़ रही है। लेकिन इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं है।