![](https://etvuttarakhand.com/wp-content/uploads/2024/04/h-6-750x450.jpg)
![](https://www.swastik-mail.in/wp-content/uploads/2024/07/300x250-1.jpeg)
लोकसभा चुनावों के इतिहास में जब-जब लहर उठी, उससे उत्तराखंड की सियासत भी महफूज नहीं रही। चुनावों के दौरान उठी लहरों ने अपना करिश्मा दिखाया और इनके आगे विरोधी दल और उनके उम्मीदवार ठहर नहीं पाया। कभी इमरजेंसी के खिलाफ उठी लहर ने कमाल दिखाया तो कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उठी सहानुभूति की लहर ने विरोधियों का सूपड़ा ही साफ कर दिया।
चुनावों में उठी राम लहर से भाजपा ने जड़े जमाईं तो मोदी लहर में उसका राजनीतिक साम्राज्य और अधिक फैल गया। इन चुनावी लहरों में उत्तराखंड के मतदाताओं ने अपने मतदान व्यवहार में उल्लेखनीय एकजुटता और निर्णायकता दिखाई। इन लहरों के दौरान उम्मीदवारों के चुने जाने का अंतर कभी-कभी 65 से 70 फीसदी तक पहुंच गया।
जीत का यह भारी अंतर लहर की ताकत और राज्य में लोगों के मतदान पैटर्न को किस हद तक प्रभावित करता है, इसका प्रमाण है। उत्तराखंड में चुनावी लहरों की घटना के पीछे एक कारण राज्य के मतदाताओं पर राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक घटनाक्रमों का मजबूत प्रभाव माना जाता है। जनसंख्या और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मामले में राज्य के अपेक्षाकृत छोटे आकार को देखते हुए उत्तराखंड के मतदाता देश के बाकी हिस्सों में चल रही बड़ी राजनीतिक धाराओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते रहे हैं।
1977 के लोस चुनाव ने भारतीय लोकतंत्र की ताकत का परिचय दिया