Sunday, January 12, 2025
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उत्तराखंड में इस बार होगी अधिक ठंड और बारिश, जानें वैज्ञानिकों से इसका कारण

उत्तराखंड में रविवार से अधिकतर इलाकों में जबरदस्त ठंड का प्रकोप है. मैदानी इलाकों में शीतलहर तो पहाड़ी इलाकों में बर्फबारी जारी है. अगर आप यह सोच रहे हैं कि आने वाले कुछ दिनों में मौसम सही हो जाएगा, तो आप गलत हैं. मौसम वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इस बार सर्दी लोगों को रुलाने वाली है. इतना ही नहीं आने वाले दिनों में बारिश भी लोगों को परेशान कर सकती है. मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि मानसून में इस साल बारिश भी अधिक हो सकती है. इसके पीछे की वजह क्या है, चलिए हम आपको बताते हैं.

इस बार हिमालय में लगातार इतनी बर्फबारी होगी कि वो कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ सकती है. जनवरी महीने में और अधिक ठंड पड़ेगी. पहाड़ी इलाकों में जिन जगहों पर सालों पहले बर्फ पड़ी थी, संभवत यह भी हो सकता है कि उन जगहों पर इस साल बर्फबारी देखने के लिए मिल जाए. वैज्ञानिक मान रहे हैं कि इस बार पश्चिमी विक्षोभ पर ला नीना का असर कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है कि मौसम में अधिक बदलाव आएगा. खासकर ये बदलाव हिमालय में देखा जाएगा. मौसम के जानकार जहां इसे पर्यावरण के लिए सही मान रहे हैं, वहीं किसानों के लिए भी इसे हितकारी बता रहे हैं.

ला नीना का असर एक हफ्ते पहले शुरू हो गया था. इसके बाद हिमालयी क्षेत्र में मौसम अचानक बदला. आपको याद होगा कि दिसंबर महीने में बर्फबारी के लिए पहाड़ तरस गए थे. अचानक से न केवल बर्फबारी हुई, बल्कि ऐसी बर्फबारी हुई कि पहाड़ी राज्य कश्मीर और हिमाचल प्रदेश से लेकर उत्तराखंड तक बर्फ की सफेद चादर में ढक गए.

 नैनीताल में मौजूद आर्यभट्ट विज्ञान शोध संस्थान के वैज्ञानिक डॉ नरेंद्र इस पर गहनता से नजर बनाने के बाद कहते हैं कि यह बदलाव दिसंबर महीने में ही शुरू हो गया था. देश में 60% से अधिक ला नीना की संभावना बताई जा रही थी और ये सही साबित भी हुआ. हो सकता है कि इस बार ऐसी जगह पर बर्फबारी हो जाए जहां पर सालों पहले कभी बर्फबारी हुआ करती थी. इसका असर मौसम पर बेहतर पड़ता है.

विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा कि फरवरी 2025 तक यह संभावना है कि ला नीना की प्रबलता 60 फीसदी तक बढ़ सकती है. ला नीना का मतलब मध्य और पूर्वी भूमध्य रेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में बड़े पैमाने पर होने वाली गिरावट से है. ये गिरावट उष्ण कटिबंधीय वायुमंडलीय परिसंचरण जैसे- हवा, दबाव और वर्षा में परिवर्तन से जुड़ा हुआ है. यह मुख्य रूप से भारत में मानसून के मौसम के दौरान तीव्र और लंबे समय तक होने वाली बारिश और उत्तरी भारत में सामान्य से अधिक ठंड से जुड़ा है.

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