चुनावी रण में पेंशन और पेंशनर्स के मुद्दों पर दलों में दंगल शुरू हो गई है। कांग्रेस पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा हर मंच पर उठा रही है, तो भाजपा प्रत्याशी पेंशनर्स के साथ बैठक कर संवाद कर रहे हैं। वहीं, दूसरे दल और कई निर्दलीय प्रत्याशी भी पेंशनर्स के मामलों को वोटर के बीच मुखरता से उठा रहे हैं।
उत्तराखंड में करीब 1.29 लाख राज्य की राजकीय सेवा और 77 हजार निजी क्षेत्र के रिटायर्ड कर्मचारी हैं। इनके अलावा पूर्व सैनिकों की संख्या 1.77 लाख है। यह संख्या अपने आप में राजनीति में वोटों के गुणा-भाग के हिसाब से काफी अहम है। ऐसे में लोकसभा चुनाव में जैसे-जैसे प्रचार रफ्तार पकड़ रहा है, राजनीतिक मंचों पर पेंशनर्स की बात भी उठने लगी है।
हिमाचल और राजस्थान में पुरानी पेंशन बहाली के कांग्रेस सरकारों के फैसले को उत्तराखंड की राजनीति में कांग्रेस उदाहरण के तौर पेश कर रही है। वहीं, भाजपा सेवानिवृत्त कर्मचारियों के बीच संवाद के लिए सीधे प्रत्याशियों को सामने रख रही है।
घोषणा पत्र में शामिल हो पेंशन का मुद्दा
ईपीएस-95 पेंशन स्कीम से जुड़े ईपीएफओ के पेंशनधारक पूर्व में दून से लेकर दिल्ली तक आंदोलन कर चुके हैं। ईपीएस-95 पेंशन संगठन के प्रदेश महासचिव बीएस रावत कहते हैं कि हम ईपीएफओ पेंशनधारकों की न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये है।
मोर्चा ने प्रत्याशियों से रखी अपनी बात
राष्ट्रीय पुरानी पेंशन बहाली संयुक्त मोर्चा के प्रदेश महामंत्री सीता राम पोखरियाल कहते हैं कि हमने पांचों सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों से मुलाकात कर पुरानी पेंशन बहाली की अपनी बात रख दी है। हमने नारा दिया है जो पुरानी पेंशन की बात करेगा वह देश में राज करेगा। अब देखना है कि राजनैतिक दलों के घोषणा पत्र में इस मांग को कितना महत्व दिया जाता है। उसी हिसाब से फैसला लिया जाएगा।
ओआरओपी-टू की विसंगतियों को दूर नहीं किया गया है। हम लगातार केंद्र सरकार के सामने इसे उठाते आ रहे हैं। राज्य सरकार से सरकारी नौकरियों में पूर्व सैनिकों के लिए आरक्षण पांच से बढ़ाकर 15 फीसदी करने की मांग रखी है। पूर्व सैनिक का कोटा खाली रहने पर उनके आश्रित को मौका देने की मांग करते आ रहे हैं। लोकसभा चुनाव में भी पूर्व सैनिक प्रत्याशियों के सामने अपनी इस मांग को मुखरता के साथ रख रहे हैं।
महावीर राणा, अध्यक्ष, गौरव सेनानी एसोसिएशन उत्तराखंड
राजनीतिक दलों के फैसले का है इंतजार
आमतौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारी को अपनी मांगों के हल के लिए कोर्ट का रुख करना पड़ता है। इसके बाद भी फैसले लेकर उन्हें लागू नहीं किया जाता है। इस पर राजनैतिक दलों को अपनी स्थिति कम से कम चुनाव में स्पष्ट करनी चाहिए कि वह पेंशनर्स को कितना महत्व देते हैं। बाकी राजनीतिक दलों का जैसा रुख होगा, हम उसी तरह से अपना रुख चुनाव में रखेंगे। क्योंकि रिटायरमेंट के बाद हम स्थानीय मुद्दों को भी उठाते आए हैं।