सक्रिय राजनीति से तीन साल का वनवास खत्म होने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीत के साथ वापसी की है। मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद से त्रिवेंद्र को कोई जिम्मेदारी नहीं मिली थी। इस बार संगठन ने उन पर भरोसा जताया तो त्रिवेंद्र ने दिखा दिया कि मैदान में उनकी धमक कायम है।
त्रिवेंद्र की इस जीत को उनके राजनीतिक कॅरियर में एक नई दिशा मिलने के तौर पर देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बाद से त्रिवेंद्र को एक राजनीतिक अवसर का इंतजार था। कुछ अवसरों पर संगठन में उन्हें अहम जिम्मेदारी दिए जाने की चर्चाएं गरमाती रहीं, लेकिन हर बार त्रिवेंद्र समर्थकों को मायूस होना पड़ा। 2022 में अपनी पारंपरिक डोईवाला सीट से भी वह चुनाव नहीं लड़ पाए।
हालांकि, इस सीट पर पार्टी ने उन्हीं के पसंद के चेहरे बृजभूषण गैरोला को मैदान में उतारा था। त्रिवेंद्र के समर्थन से गैरोला चुनाव जीत गए थे। बावजूद इसके त्रिवेंद्र को कोई बड़ी जिम्मेदारी का इंतजार रहा। इस बार लोकसभा चुनाव में पार्टी ने अपने सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक का टिकट काटकर हरिद्वार लोस सीट पर जीत की जिम्मेदारी त्रिवेंद्र को सौंपी।
त्रिवेंद्र ने भी पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ा। जीत के तौर पर नतीजा सामने है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि त्रिवेंद्र की इस जीत के कई मायने हैं। केंद्र में सरकार बनने की सूरत में त्रिवेंद्र समर्थक किसी बड़ी जिम्मेदारी की भी अपेक्षा कर रहे हैं।
2002 से सक्रिय राजनीति में आए त्रिवेंद्र
2002 में डोईवाला से विधानसभा चुनाव जीतकर त्रिवेंद्र सक्रिय राजनीति में आए। इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में भी डोईवाला विधानसभा से चुनाव जीतकर मंत्री बने। भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रहे। झारखंड और यूपी के सह प्रभारी रहे। 17 मार्च 2017 को त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने और मार्च 2021 में उन्होंने पद से इस्तीफा दिया था। इसके बाद से लगातार वह सक्रिय राजनीति से दूर थे।