उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश बनने की तरफ एक और कदम बढ़ाने जा रहा है. एक तरफ जहां सरकार सोलर एनर्जी को बढ़ावा दे रही है तो वहीं दूसरी ओर सरकार को फोकस जियोथर्मल एनर्जी की तरफ भी बढ़ा है. इसी क्रम में उत्तराखंड सरकार के तमाम अधिकारी आइसलैंड दौरे पर गए थे, जहां उन्होंने आइसलैंड में बने जियोथर्मल पावर प्लांट की बारीकियों को देखा. इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार ने यह निर्णय लिया था कि उत्तराखंड के कुछ जगहों पर पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जियोथर्मल पावर प्लांट स्थापित जाएगा. इसके लिए आइसलैंड सरकार के साथ टेक्नोलॉजी साझा करने के लिए एमओयू साइन किया जाएगा.
उत्तराखंड में जियोथर्मल एनर्जी की अपार संभावनाएं है, जिसका अगर सही ढंग से इस्तेमाल किया जाए तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना बिजली का उत्पादन किया जा सकता है. यही वजह है सरकार जियोथर्मल से विद्युत उत्पादन पर जोर दे रही है. देश के हिमालयी क्षेत्रों में बड़ी संख्या में तप्त कुंड मौजूद है. हालांकि अभी तक करीब 340 तप्त कुंड के स्रोत ही चिन्हित किए गए है. यदि यहां भी जियोथर्मल पावर प्लांट लगाया जाए तो करीब करीब 2000 मेगावाट बिजली का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है.
वहीं, उत्तराखंड की बात करे तो प्रदेश में 40 तप्त कुंड मौजूद है, जिसमें से 20 गढ़वाल और 20 कुमाऊं क्षेत्र में है. चमोली जिले के तपोवन में मौजूद जियोथर्मल स्प्रिंग्स से करीब 5 मेगावाट तक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है, जिसको देखते हुए सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी भारत सरकार ने पिछले साल 2023 में जियोथर्मल एनर्जी के इस्तेमाल को लेकर उत्तराखंड सरकार को पत्र भेजा था. ताकि वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर दिया जा सके.
वर्किस आइसलैंड में जियोसर्वे और भू-तापीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के अधिकारियों ने उत्तराखंड में भू-तापीय परियोजनाओं पर चर्चा की थी. आइसलैंड दौरे के बाद अधिकारियों ने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में प्रदेश में मौजूद एक तप्तकुंड पर जियोथर्मल पावर प्लांट लगाने का निर्णय लिया था. इसके लिए आइसलैंड सरकार के साथ एमओयू साइन किया जाना था. ताकि आइसलैंड अपनी टेक्नोलॉजी को उत्तराखंड सरकार के साथ साझा करते हुए जियोथर्मल पावर प्लांट की बारीकियों को बताए. हालांकि इस बात को कई महीने बीत गए है, लेकिन अभी तक आइसलैंड सरकार के साथ एमओयू साइन नहीं हो पाया है. लेकिन अब इस दौरान सरकार की तरफ से कुछ कदम आगे बढ़ाए गए है.