
बलुवाकोट: उच्च हिमालय में पिघल रहे सीजनल ग्लेशियरों के चलते काली नदी का जलस्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। ऊपर से अब सीमांत में मौसम भी अपना मिजाज बदल चुका है। आए दिन बारिश हो रही है। काली नदी किनारे स्थित गांवों और कस्बों में रहने वालों की धड़कन भी तेज हो चुकी है। नौ वर्ष पूर्व की हिमालयी सुनामी के जख्म अभी भरे नहीं हैं ऊपर से प्रतिवर्ष किनारे की भूमि को लील रही काली नदी से सबसे बड़ा खतरा बलुवाकोट को हुआ है। अभी मानसून काल प्रारंभ होने में डेढ़ माह का समय है परंतु बलुवाकोटवासियों की नींद उड़ चुकी है। तटबंध निर्माण की मांग को लेकर ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया।
नौ वर्ष पूर्व जून माह में आई आपदा ने सीमांत के कई स्थलों का भूगोल बदल दिया था। ऐसा ही एक स्थल टनकपुर -तवाघाट हाईवे से लगा नेपाल सीमा पर स्थित बलुवाकोट है। जिस बलुवाकोट बाजार से 2013 से पूर्व काली नदी नजर नहीं आती थी , तब से काली नदी बाजार में स्थित मकानों के पास बह रही है। आपदा के बाद यहां पर बनाए गए तटबंध काली नदी की लहरों के वेग को नहीं संभाल सके और तटबंध क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। बलुवाकोट को बचाने के लिए नए सिरे से तटबंध निर्माण भी नहीं हो रहा है।
धारचूला में तटबंध निर्माण कार्य चल रहा है। बलुवाकोट की जनता भी धारचूला की तर्ज पर ही तटबंध निर्माण की मांग कर रहे हैं, परंतु तटबंध निर्माण कार्य स्वीकृत नहीं होने से जनता में आक्रोश बढ़ चुका है। रविवार को युवा नेता पंकज मेहरा के नेतृत्व में ग्रामीणों ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि काली नदी का जलस्तर बढ़ने लगा है। सरकार ने सुरक्षा के कदम नहीं उठाए हैं, लोगों के बेघर होने का खतरा बढ़ चुका है। पूर्व में प्रभावित परिवारों का विस्थापन नहीं किया गया है। पंकज मेहरा ने कहा कि धारचूला की तर्ज पर ही बलुवाकोट में तटबंध निर्माण नहीं किया गया तो बलुवाकोट की जनता धरना, प्रदर्शन करेगी। इस आशय का ज्ञापन जिलाधिकारी को भेजा गया।