
पूरे देश में शारदीय नवरात्र का पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. नौ दिन तक चलने वाले इस महा पर्व पर मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जो अपनी ऐतिहासिकता और सिद्धि के लिए प्रसिद्ध हैं. आज हम उस ऐतिहासिक मंदिर की बात करेंगे, जो बुंदेलखंड के जालौन के बैरागढ़ में स्थित है. यह मंदिर बुंदेलखंड के महान योद्धा आल्हा-ऊदल और देश के आखिरी हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के युद्ध का गवाह बना था. इस युद्ध को मां शारदा ने स्वयं देखा था.
बैरागढ़ धाम में स्थित शक्ति पीठ मां शारदा देवी का यह मंदिर जिला मुख्यालय उरई से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मंदिर है. यहां जालौन से ही नहीं अपितु पूरे देश के इलाकों से भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां नवरात्र में ही नहीं बल्कि 12 माह श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. नवरात्र पर यहां पर भव्य आयोजन किया जाता है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं. मां शारदा देवी की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है. मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मंदिर की स्थापना चंदेल कालीन राजा टोडलमल द्वारा 11वीं सदी में कराई गई थी.
सुवेदा ऋषि की तपोभूमि है बैरागढ़ धाम
मां शारदा का मंदिर सुवेदा ऋषि की तपोस्थली है. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां शारदा कुंड से प्रकट हुई थीं. प्राचीन किवदंतियों के अनुसार, कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थीं, इसीलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है. वर्तमान में यह मंदिर खेत में स्थित है. मां शारदा शक्ति पीठ का दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार, मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है. सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है, जिनके दर्शन के लिए पूरे भारत से श्रद्धालु आते हैं.
आल्हा और पृथ्वीराज के युद्ध की गवाह हैं मां शारदा
मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध का साक्षी है. 11वीं सदी में हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान देश के हर एक इलाके को जीतने के बाद बुंदेलखंड को जीतने आए थे. तब बुंदेलखंड में चंदेल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) का राज था. उस समय चंदेलों की राजधानी महोबा थी. आल्हा-ऊदल राजा परमाल के मंत्री के साथ बुंदेलखंड के वीर योद्धा भी थे. राज परमाल ने पृथ्वीराज से युद्ध करने के लिए सेना के साथ दोनों योद्धाओं को भेजा.
यह युद्ध जालौन के बैरागढ़ में हुआ था. इस युद्ध में ऊदल वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जिसका बदला लेने के लिए आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था. आल्हा-ऊदल मां शारदा के उपासक थे, जिसमें आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पाएगा. ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुए अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी.
आल्हा ने सांग (भाला) गाढ़ कर ले लिया था बैराग
जालौन के जिस स्थान पर मां शारदा शक्ति पीठ का मंदिर स्थित है, उसका नाम बैरागढ़ है. आल्हा के युद्ध जीतने के बाद बैराग लेने के कारण इसका नाम बैरागढ़ पड़ा. आल्हा ने पृथ्वीराज पर विजय प्राप्त करने के बाद मां शारदा के चरणों में सांग (भाल) गाढ़ दी और उसकी नोक को टेड़ी कर दिया था. आल्हा ने कहा था जो भी इसे सीधी कर देगा, मैं उससे हार स्वीकार कर लूंगा, लेकिन उसको कोई सीधा नहीं कर पाया, जो आज भी मंदिर के मठ के ऊपर गढ़ी है. ये सांग (भाला) उस समय 100 फिट की उंचाई पर थी, लेकिन मंदिर का निर्माण होने के कारण यह 30 फिट ऊंची अभी भी दिखाई देती है. यह सांग जमीन में 100 फीट से अधिक गढ़ी है. मंदिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता दर्शाता है.