
नई दिल्ली, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्देश दिया कि बाल तस्करी के पीडि़त बच्चों की गवाही उस जिले के जिला न्यायालय परिसर या जिला विधि सेवा प्राधिकरण के कार्यालय से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये होनी चाहिए जहां बच्चा रह रहा है।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने कहा कि वह तस्करी के पीडि़तों की मुश्किलों के प्रति चिंतित हैं जिन्हें ट्रायल कोर्ट में गवाही देने के लिए लंबी दूरी की यात्रा करके आना पड़ता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के बारे में न्याय मित्र द्वारा दिए गए सुझावों को नियमित रूप से अमल में लाया जाना चाहिए और इनका पालन सिर्फ कोविड काल तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।
पीठ ने निर्देश दिया कि बच्चों की गवाही वाले सभी आपराधिक मुकदमों में इस एसओपी का पालन किया जाएगा जिनमें बच्चे कोर्ट प्वाइंट्स के पास नहीं रहते हैं। पीठ ने रिमोट प्वाइंट्स को-आर्डिनेटर्स (आरपीसी) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि गवाही के दौरान बच्चों के अनुकूल पद्धति को अपनाया जाए। अदालत ने यह भी कहा कि इसके लिए आरपीसी को 1,500 रुपये प्रतिदिन का मानदेय का भुगतान किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्याय मित्र द्वारा दिए गए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) से संबंधित सुझावों को एक नियमित विशेषता के रूप में व्यवहार में लाया जाना चाहिए और प्रक्रिया को सिर्फ कोरोना महामारी से प्रभावित अवधि तक सीमित रखने की जरूरत नहीं है।
पीठ ने कहा, हम निर्देश देते हैं कि एसओपी का पालन सभी आपराधिक मुकदमों में किया जाना चाहिए। हम रिमोट प्वाइंट समन्वयक (आरपीसी) को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देते हैं कि गवाहों के परीक्षण के दौरान बच्चों के अनुकूल चीजें अपनाई जानी चाहिए।
उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि आरपीसी को मानदेय के रूप में हर दिन 1500 रुपये का भुगतान किया जाएगा। अदालत ने यह बात ऐसे वक्त कही जब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) के वकील ने राशि के भुगतान पर सहमत होने की बात बताई।
पीठ ने कहा कि दूरस्थ बिंदु और निचली अदालत के संबंधित न्यायिक अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि जहां कहीं जरूरी हो सुबूत बंद कमरे में दर्ज किए जाएं। अब मामले में अगली सुनवाई दो मई 2022 को होगी।