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बीजेपी का नीतीश को मनाने का प्रयास नहीं करना का संकेत स्पष्ट है

बिहार में नीतीश कुमार ने 8वीं बार सीएम पद की शपथ ली है. जिस तरीके से वो अपने साथियों को धता बताकर दूसरे का हाथ पक़ड़ लेते हैं, वो उनकी राजनीतिक कलाबाजी ही है, लेकिन देश भर में बीजेपी जिस तरह हर राज्य में सरकार बनाने के लिए बेताब दिखती थी, वैसी तलब इस बार बिहार में नहीं दिखाई दी. आखिर बीजेपी अब बिहार में अब क्या सोच रही है? क्या है बिहार में बीजेपी का भविष्य?

1- गिरती अर्थव्यवस्था- कानून व्यवस्था आदि को मुद्दा बनाना आसान होगा

बीजेपी के सामने सबसे बड़ा लक्ष्य 2024 में लोकसभा चुनाव जीतना है. इसके लिए वो हर छोटी-बड़ी कुर्बानी देने को तैयार है. बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव में वोटों का प्रतिशत इस तरह का नहीं रहा कि उसे 40 सीट जीतने की उम्मीद दिखे. बीजेपी कार्यकर्ताओं और कई मंत्रियों की ओर से पहले ही आवाज उठ चुकी थी यूपी जैसी कड़े फैसले लेने वाली बुलडोजर सरकार अगर बिहार में नहीं होगी तो अगली बार जनता का वोट मिलना मुश्किल होगा. इस बार सरकार में नीतीश कुमार जिस तरह निस्तेज लग रहे थे उनसे ज्यादा उम्मीद करना बेमानी हो गया था. अवैध शराब से होने वाली मौतों और प्रदेश में गिरती कानून व्यवस्था का हल निकालने में सरकार लगातार असफल साबित हो रही थी. विपक्ष में रहकर इन मुद्दों को ठीक से उठाकर बीजेपी आगामी लोकसभा और विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने का उम्मीद पाल सकती है.

2- यूपी की तरह छोटी पार्टियों के सहारे खड़ा होने की तैयारी

बिहार की राजनीति काफी हद तक उत्तर प्रदेश की ही तरह है. उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के रहते हुए जिस तरह बीजेपी ने अपने को खड़ा किया है, वही प्रयोग अब बिहार में होने वाला है. बिहार में कई जातियों की छोटी-छोटी पार्टियों को इकट्टा करके बीजेपी आरजेडी और जेडीयू का मुकाबला करने के लिए कमर कसने के लिए तैयार है. बिहार में जेडीयू और आरजेडी से नाराज बहुत सी जातियों का सपोर्ट बीजेपी हासिल करने की कोशिश करेगी.

3- नीतीश-लालू-पासवान की लीगेसी पर कब्जा करने की तैयारी

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश -पंजाब आदि के चुनावों में यह स्पष्ट देखने को मिला है कि पुरानी राजनीति के धुऱंधरों का खेल खत्म हो चुका है. विरासत की राजनीति करने वालों की लंका लग चुकी है. देश में एक नए किस्म की राजनीति शुरू हो रही है. बिहार में भी परिवर्तन होना तया है. लालू यादव और नीतीश कुमार की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है. पासवान की पार्टी खत्म हो चुकी है. आरजेडी को जरूर कुछ सफलता मिली पर आधार कमजोर होना तय है. इन पार्टियों की जगह भरने के लिए बीजेपी अपने नए कलेवर (पिछड़ों की पार्टी का ठप्पा) के साथ सक्रिय होने का प्रयास करेगी.

4- बीजेपी का नीतीश को मनाने का प्रयास नहीं करना का संकेत स्पष्ट है

बीजेपी को ही नहीं आम लोगों को भी पता चल गया था कि बिहार में नीतीश कुमार क्या करने जा रहे हैं. बीजेपी नेता जानते थे कि नीतीश कुमार कभी भी आरजेडी का पल्लू थाम सकते हैं. यह कोई ढंकी छुपी बात नहीं थी. दोनों तरफ से एक दूसरे के खिलाफ हमलावर अंदाज गायब था. दोनों ही तरफ से लोगों को मिलना जुलना देखकर ये पहले से यह तय था. पिछले दिनों जब जेडीयू की तरफ से एक खबर चलवायी गई कि बीजेपी के एक बड़े नेता ने फोन पर नीतीश कुमार से बात की तो तुरंत बीजेपी की ओर खंडन भी आ गया. नहीं तो ऐसे मौकों पर राजनीति यही कहती है कि चुप्पी साधे रखो. मतलब साफ था कि बीजेपी को भी गठबंधन से एग्जिट करने में ही अपनी भलाई समझ में आ रही थी.

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