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आपदा में विस्थापित गांवों के पुनर्वास का मामला अभी तक भी अधर में लटका

पिथौरागढ़: मानसून काल यानी आपदा काल अब नजदीक है। सीमांत तहसीलों के 22 संवेदनशील गांवों में रहने वाले लोगों के दिलों की धड़कन बढ़ने लगी है। इन गांवों में रहने वाले 321 परिवारों के पुनर्वास का मामला अधर में ही लटका है। जिले से भेजे गए पुनर्वास के 44 प्रस्तावों में से 30 प्रस्तावों को शासन से स्वीकृति मिली है, लेकिन डेढ़ माह के भीतर पुनर्वास पूरा हो पाना संभव नहीं है।

आपदा की दृष्टि से पिथौरागढ़ जिले की धारचूला, मुनस्यारी और बंगापानी तहसील बेहद संवदेनशील हैं। आपदा काल में इन्हीं तीन तहसीलों में सर्वाधिक नुकसान होता है। ला झेकला, राया बजेता, कनार, बरम, मालपा जैसी तमाम आपदाएं क्षेत्र के लोग झेल चुके हैं। कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है।

हर वर्ष आपदा का सामना करने वाले इन गांवों के विस्थापन के प्रस्ताव पिछले एक दशक से तैयार किए जा रहे हैं, जिले में आज तक एक भी गांव का विस्थापन नहीं हो सका है। कुछ गांव विस्थापन की प्रक्रिया में हैं, लेकिन भवन निर्माण के काम पूरे नहीं हो पाने के कारण ग्रामीण अभी भी पुराने गांवों में ही ठिकाना बनाए हुए हैं। प्रशासन ने इस वर्ष पुनर्वास के 44 प्रस्ताव शासन को भेजे थे, इनमें से 30 प्रस्तावों को शासन से स्वीकृति मिल पाई है। जिले में अभी 321 परिवार ऐसे हैं जिन्हें विस्थापित किया जाना है। मानसून काल तक इनका विस्थापन हो पाना संभव नहीं है।

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