
उत्तराखंड में आने वाले दिनों में औद्योगिक व औषधीय भांग (हैंप) की खेती और इससे संबंधित औद्योगिक इकाइयां रोजगार, स्वरोजगार की नई संभावनाओं के द्वार खोलेंगे। इसके लिए राज्य की हैंप नीति का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है, जिसे विधि विभाग को भेजा गया है।
जल्द ही ड्राफ्ट को अंतिम रूप देकर इसे स्वीकृति के लिए कैबिनेट में रखा जाएगा। नए साल में यह नीति अस्तित्व में आ जाएगी। इससे राज्य में बड़े निवेश की संभावना है। कई नामी औद्योगिक समूह इसमें रुचि दिखाते हुए जानकारी ले रहे हैं।विश्व के लगभग 30 देशों में भांग (हैंप) की खेती होती है। इसके 10 हजार से ज्यादा उत्पाद हैं।
उद्योगों में होता है भांग के रेशे (फाइबर) का उपयोग
भांग के रेशे (फाइबर) का उपयोग टेक्सटाइल, कागज, पल्प, फर्नीचर समेत अन्य उद्योगों में होता है। यही नहीं, कैंसर, ग्लूकोमा, मधुमेह जैसी बीमारियों के उपचार में प्रयोग की जाने वाली दवाओं के निर्माण में भी भांग का उपयोग होता है। इस सबको देखते हुए वर्ष 2016 में उत्तराखंड में भांग की खेती की संभावनाएं, बाजार की उपलब्धता और इसके लिए नियम कानून बनाने को लेकर कसरत हुई। तब प्रारंभिक तौर पर इसे लेकर कार्य हुआ, लेकिन नीति नहीं बन पाई।
पिछली सरकार के कार्यकाल में राज्य में औद्योगिक व औषधीय भांग की खेती और इससे संबंधित इकाइयों के क्षेत्र में निवेश की संभावनाओं के दृष्टिगत कसरत तेज की गई। बाद में राज्य सरकार के उपक्रम सगंध पौधा केंद्र (कैप) के निदेशक डा नृपेंद्र चौहान को हैंप नीति का ड्राफ्ट तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया।
सूत्रों के अनुसार गहन अध्ययन के बाद नीति का प्रारंभिक ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है। इसमें औद्योगिक व औषधीय भांग की खेती के लिए नियम, लाइसेंस, निगरानी, जांच व प्रसंस्करण से लेकर उद्योग स्थापना तक के लिए नियम प्रस्तावित किए गए हैं। इसमें आबकारी, स्वास्थ्य, उद्योग समेत अन्य विभागों को जोड़ा गया है। जिन स्थानों में भांग की खेती होगी, वहां सीसीटीवी कैमरे, जीपीएस आदि का उपयोग निगरानी में होगा।