
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा आईपीसी की धारा 377 को गैर-आपराधिक घोषित करने से समलैंगिक लोगों को कानूनी रूप से सशक्त नागरिक के रूप में उभरने में मदद मिली है। उन्होंने कहा कि हालांकि इस फैसले ने उन्हें अधिकार और गर्व के साथ अपने अधिकारों की मांग करने में सक्षम बनाया, लेकिन फिर भी हाशिए पर खड़े लोगों के लिए सकारात्मक कानूनी प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए संरचनात्मक बदलावों की आवश्यकता है, जो लगातार उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं।
मंगलवार को आईआईटी-दिल्ली में एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जाति और वर्ग की स्थिति के कारण समलैंगिकों के कुछ समूह प्रतीकात्मक और भौतिक नुकसान दोनों के संदर्भ में कानून के दुरुपयोग के लिए अतिसंवेदनशील और कमजोर हैं।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय 6 सितंबर, 2018 के नवतेज सिंह जौहर के फैसले में समलैंगिकता को गैर-अपराधीकरण मानने में सक्षम हुआ जो याचिकाकर्ताओं और अनगिनत लोगों की कहानियों और अनुभवों के बिना संभव नहीं था। आज एक विशेष अवसर भी है क्योंकि हमें नवतेज सिंह जौहर केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की चौथी वर्षगांठ मनाने का मौका मिला है। जबकि धारा 377 के अपराधीकरण ने समलैंगिक लोगों को कानूनी रूप से सशक्त नागरिक के रूप में उभरने और अपने अधिकारों की मांग करने में सक्षम बनाया है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अन्वेश पोक्कुलुरी बनाम भारत संघ के मुकदमे को याद किया जिसमें आईआईटी-दिल्ली सहित देश भर के विभिन्न आईआईटी के लगभग 20 छात्र और पूर्व छात्र शामिल थे, जो एलजीबीटी के लिए एक सहायता समूह ‘प्रवृत्ति’ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अदालत के समक्ष सबसे कम उम्र का याचिकाकर्ता वास्तव में आईआईटी-दिल्ली का एक युवा 19 वर्षीय छात्र था। धारा 377 की मुकदमेबाजी में अदालत के समक्ष एक स्टैंड लेकर आईआईटी के छात्रों और पूर्व छात्रों ने न केवल एक आधुनिक समकालीन भारत के निर्माण में मदद की, बल्कि अपने तकनीकी कौशल को आगे बढ़ाकर देश को संवैधानिक मूल्यों के करीब ले भी ले गए।