
सीमावर्ती राज्य नागालैंड में सुरक्षा बलों की गोलीबारी में 14 असैन्य नागरिकों की मौत के मद्देनजर प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं होने के बाद मंगलवार को स्थिति तनावपूर्ण, हालांकि, शांत बनी रही. वहीं, राज्य मंत्रिमंडल ने केंद्र से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (आफ्सपा) को निरस्त किये जाने की मांग करने को लेकर एक बैठक की.
अधिनियम को निरस्त करने की मांग नयी दिल्ली में संसद में भी उठी. नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) की सांसद एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में मंत्री रह चुकी अगाथा संगमा ने कहा कि यह ऐसा बड़ा मुद्दा है, जिससे हर कोई अवगत है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया जा रहा क्योंकि हर कोई उस पर चर्चा करने में असहज महसूस करता है. उन्होंने कहा कि इसका समाधान करने की जरूरत है.
एनपीपी की नेता ने पूर्वोत्तर में पहले की कुछ घटनाओं का उल्लेख किया और कहा, ‘कई नेताओं ने यह मुद्दा उठाया है. अब समय आ गया है कि आफस्पा को हटाया जाए.’
1958 में लागू हुआ था आफ्सपा
नागालैंड में उग्रवाद शुरू होने के बाद सशस्त्र बलों को गिरफ्तारी और हिरासत में लेने की शक्तियां देने के लिए आफस्पा को 1958 में लागू किया गया था. आलोचकों का कहना रहा है कि सशस्त्र बलों को पूरी छूट होने के बावजूद यह विवादास्पद कानून उग्रवाद पर काबू पाने में नाकाम रहा है, कभी-कभी यह मानवाधिकारों के हनन का कारण भी बना है.
संगमा ने कहा कि नागालैंड में 14 असैन्य नागरिकों की हत्या ने मालोम नरसंहार की यादें ताजा कर दी, जिसमें इंफाल (मणिपुर) में 10 से अधिक असैन्य नागरिकों की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी तथा इस वजह से 28 वर्षीय इरोम शर्मिला को 16 साल लंबे अनशन पर रहना पड़ा.