
मंडला: आदिवासी बाहुल्य मंडला में इन दिनों फसल आने की खुशी सभी के चेहरों पर साफ दिख रही है. चारों ओर खुशी का माहौल है और आदिवासी पारपंरिक नृत्य सैला पर जमकर थिरक रहे हैं. महीनों तक की गई मेहनत का फल मिलने के बाद की खुशी में आदिवासी नृत्य कर अपनी खुशी जाहिर करते हैं.इन दिनों किसान खरीफ की फसल काट रहा है, जबकि रबी सीजन के लिए फसल की बुवाई की जा रही है.
ग्रामीणों की मानें तो सैला नृत्य से उनके देवता प्रसन्न होकर फसलों की रक्षा करते हैं. इन दिनों खेत खलिहानों में जहां तक नजर जाएगी, वहां तक रामतिल और सरसों की फसल लहरा रही है. खरीफ सीजन की फसल के स्वागत के लिए आदिवासी पारंपरिक वेशभूषा में सैला नृत्य से समां बांध रहे हैं और महिलाएं भी ताल से ताल मिला रही हैं.
पारंपरिक परिधान में डांस करते आदिवासियों के चेहरे भले ही खिले हुए हों लेकिन उनके दिल में ऐसा दर्द दफ्न है, जिसकी आवाज आज तक सियासतदानों के कानों तक नहीं पहुंची. इसी दर्द को सैला नृत्य करने वाले आदिवासियों ने ईटीवी भारत के साथ साझा किया और सरकार से अपनी संस्कृति को बचाने की गुहार लगाई.
ठंड के मौसम में जब खरीफ की फसल काटी जाती है और रबी की फसल की बुआई की जाती है तब सैला नृत्य का आयोजन होता है. कटाई के बाद जिसके घर पहले फसल आती है सबसे पहले उसके यहां नृत्य का आयोजन होता है, जिसमें ग्रामीणों के साथ रिश्तेदार भी शामिल होते हैं और पारंपरिक नृत्य के जरिए समां बांधते हैं.
लेकिन अफसोस कि स्थानीय जनप्रतिनिधियों और सरकारी की उदासीनत के चलते आज सैला जैसी पारंपरिक नृत्य की विधा विलुप्ति की कगार पर है.