
हल्द्वानी : सरकारी स्कूली शिक्षा के बाद अब तकनीकी शिक्षा भी बुरे दौर से गुजर रही है। जहां कम छात्र संख्या के चलते पहले से ही एक दर्जन आइटीआइ बंद होने के कगार पर हैं, वहीं करीब 40 आइटीआइ लंबे समय से मुखिया विहीन चल रहे हैं। रिक्त पदों को भरने के बजाय ऐसा जुगाड़ बैठाया गया है कि अब एक प्रधानाचार्य को कुमाऊं के 26 आइटीआइ देखने की जिम्मेदारी दे दी गई है, जबकि उसका मूल पद तकनीकी निदेशालय में सहायक निदेशक का है। जिस राज्य में तकनीकी शिक्षा के साथ ऐसा व्यवहार हो रहा हो वहां के नौवजवानों का भविष्य कैसा होगा बखूबी समझा जा सकता है।
40 से अधिक आइटीआइ में प्रधानाचार्य ही नहीं
कागजों में तो प्रशिक्षण निदेशालय हल्द्वानी में है, मगर सारी बैठक और योजनाओं पर मुहर देहरादून से ही लगती है। यहीं बैठे-बैठे ये तय कर लिया जाता है कि पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित आइटीआइ को कैसे चलाया जाए। इसी का नतीजा है कि राज्य के 40 से अधिक आइटीआइ में प्रधानाचार्य ही नहीं हैं। सीधी भर्ती या विभागीय पदोन्नति के जरिए रिक्त पदों को भरने के बजाय हल्द्वानी निदेशालय के दो उपनिदेशक व एक सहायक निदेशक को प्रधानाचार्य का अतिरिक्त प्रभार सौंपकर राज्य के 30 आइटीआइ चलाने का जिम्मा दे दिया गया है। सहायक निदेशक के पास चंपावत जिले के आठ व पिथौरागढ़ जिले के 18 आइटीआइ हैं, जो हल्द्वानी स्थित निदेशालय से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
ऐसे हो रही बदहाली
इस तरह निदेशालय के अफसरों को आइटीआइ संचालित करने का जिम्मा देने से तकनीकी शिक्षा बदहाली की ओर जा रही है। संबंधित आइटीआइ का काम तो प्रभावित होता ही है, यदि ये अफसर कभी निरीक्षण के लिए अपने आइटीआइ चले जाते हैं तो निदेशालय का काम ठप होना लाजिमी है। दिलचस्प बात तो ये है कि पिथौरागढ़ व चंपावत जिले के आइटीआइ के कर्मचारियों का वेतन तभी निकल सकता है जब या तो कर्मचारी हल्द्वानी निदेशालय आएं या निदेशालय से संबंधित अफसर वहां जाए।