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पहाड़ पर खेती बर्बाद कर रहे बंदर और सुअर, किसानों ने छोड़ी उपजाऊ भूमि

गरुड़ (बागेश्वर) : बंदरों व सुअरों की बढ़ती संख्या से पहाड़ का आम आदमी परेशान है। इन्होंने खेती को चौपट कर दिया है। इससे पलायन भी बढ़ रहा है और पहाड़ की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ रही है। आलम यह है कि जिले की 6175 हेक्टेयर भूमि में काश्तकारों ने खेती करनी ही छोड़ दी है। कत्यूर घाटी का तो बुरा हाल है।

अकेले गरुड़ के सेणु व मुझारचौरा गांव में 30 नाली उपजाऊ जमीन परती पड़ी है। लोगों ने अब सब्जी उगाना भी छोड़ दिया है। गांव के गांव बाजार पर निर्भर हो गए हैं, जिससे लोग पलायन करने को मजबूर हैं। यदि समय रहते सरकार ने जंगली जानवरों के लिए ठोस योजना नहीं बनाई तो यहां की पूरी खेती ही परती में तब्दील हो जाएगी।

ये गांव हैं प्रभावित

पाये, सिल्ली, दर्शानी, मटेना, लोहारी, दुदीला, सेणु, भेटा, जिजोली, मन्यूड़ा, पचना, बिमौला, नौघर, मुझारचौरा, धैना, चोरसों, नौटा-कटारमल, जखेड़ा, लमचूला, ज्वणास्टेट, थाकला, तिलसारी, परकोटी, लखनी, डनफाट, नौघर स्टेट।

आदेश का नहीं हुआ असर

19 सितंबर 2016 को कत्यूर घाटी के संजय जोशी समेत अन्य ने हाई कोर्ट में बंदरों की समस्या को लेकर जनहित याचिका दायर की। 17 मई 2019 को हाई कोर्ट ने राज्य सरकार व वन विभाग को बंदरों की समस्या से निजात दिलाए के लिए ठोस योजना बनाने का आदेश दिया। लेकिन धरातल पर कोई योजना नहीं बनी। जनप्रतिनिधियों ने भी इस ओर आज तक ध्यान नहीं दिया। इस कारण समस्या गंभीर हो गई है।

बागेश्वर में इतनी जमीन पड़ी परती

सिंचित खेती : 1596

अङ्क्षसचित खेती : 4579

खेती छोड़ दी : 6175

(नोट : खेती का रकबा हेक्टेयर में।)

इतने किसान कर रहे खेती

-47218 हेक्टेयर भूमि पर किसान अभी कर रहे खेती

-49 हजार किसान पूरे जिले में पंजीकृत

-53, 393 हेक्टेयर भूमि कुल खेती योग्य

बंदर व सुअर खेती को नष्ट कर रहे हैं। खेती के लिए विशेष योजना व आय दोगुनी की बात होती है। लेकिन कोई ठोस पहल नहीं हो सकी है। इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया तो आने वाले समय में पहाड़ की खेती पूरी तरह चौपट हो जाएगी और यहां भुखमरी बढऩे लगेगी।

-भूपाल सिंह, प्रगतिशील काश्तकार

यहां चुनाव के समय हर बार बंदरबाड़े बनाने की बात होती है। चुनाव घोषणा पत्र में भी इस ब‍िंंदु को शामिल किया जाता है। कब इस पर अमल होगा। यह कहा नहीं जा सकता। यहां जब बंदरों से मुक्ति मिलेगी, तभी खेती बचेगी और तभी पलायन भी रुकेगा।

– लक्ष्मी दत्त खोलिया, काश्तकार

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