
देहरादून. आज वर्ल्ड एलिफैंट-डे यानी हाथी दिवस है. हाथियों की बात करें तो उत्तराखंड का जिक्र स्वाभाविक है, क्योंकि यहां के जंगलों में हाथी लगातार बढ़ रहे हैं. हाथियों की आबादी की बात करें तो कार्बेट टाइगर रिजर्व, राजाजी टाइगर रिजर्व समेत उत्तराखंड के जंगलों में हाथियों की संख्या 2000 से अधिक पहुंच चुकी है. सबसे अधिक 1224 हाथी कार्बेट में हैं, तो दूसरे नंबर पर 311 हाथी राजाजी पार्क क्षेत्र में.
पूर्व चीफ वेटरनरी अफसर, राजाजी पार्क अदिति शर्मा का कहना है कि हाथियों की संख्या में लगातार इजाफा होने के कारण अब इनके लिए जंगल कम पड़ने लगे हैं. हाथियों के पारंपरिक गलियारों पर अतिक्रमण हो चुका है. रेलवे ट्रेक, हाईवे बन चुके हैं. नतीजा हाथी जंगलों से बाहर आबादी क्षेत्रों का रुख कर रहे हैं. इससे मैन-एनिमल कन्फिल्कट बढ़ रहा है. आंकड़े इसकी तस्दीक कर रहे हैं.
अदिति शर्मा के मुताबिक साल 2020 में 11 लोग हाथियों के हमले में मारे गए थे. 2021 में यह संख्या 12 हो गई. इस साल अभी तक 5 लोग हाथी के हमले में जान गंवा चुके हैं. वहीं 23 जख्मी हुए हैं. फसलों और संपत्ति का नुकसान अलग हुआ.
मैन-एनिमल कंफ्लिक्ट कैसे रुके
हाथियों के साथ बढ़ते इस कंफ्लिक्ट को रोकने में वन विभाग नाकाम रहा है. उसके पास हाथियों की बढ़ती आबादी को जंगलों के हिसाब से नियंत्रित करने का कोई प्लान नहीं है. हाथियों के पांरपरिक गलियारों में रिहायशी इलाकों, सड़कों और रेलवे के विस्तार से जानकार इस संघर्ष में भविष्य में और भी तेजी आने की आशंका जता रहे हैं. रिटायर्ड फॉरेस्ट चीफ जयराज का कहना है कि इस दिशा में गंभीरता के साथ काम होना चाहिए. वन विभाग को टारगेट फिक्स कर उसे अंजाम तक पहुंचाना चाहिए. वरना भविष्य में संकट और गहरा सकता है.
बढ़ती आबादी ही बन रही खतरा
हालत ये है कि उत्तराखंड का वन महकमा हाथियों के मामले में आज भी कोई ठोस मैकेनिज्म विकसित नहीं कर पाया. नतीजा हाथियों की बढ़ती तादाद खुद हाथियों के लिए मौत का सबब साबित हो रही है. बीते सालों में 74 हाथी एक्सीडेंट में मारे जा चुके हैं, तो 22 हाथियों की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई. आपसी संघर्ष में सबसे अधिक 86 हाथी मारे गए और 43 हाथी शहरी क्षेत्रों में घुसते वक्त करंट की चपेट में आकर अपनी जान गंवा बैठे.