
उत्तराखंड में जेल के वर्षों पुराने कानून की जगह नया माडल जेल मैन्युअल (नियमावली) केंद्र के दिशा-निर्देशों के तीन वर्ष बाद भी लागू नहीं हो पाया है। यह स्थिति तब है जब इसके लिए बाकायदा समिति का गठन किया गया है। समिति ने इस पर एक रिपोर्ट दी, लेकिन इसमें सुधार की गुंजाइश देखते हुए इसे दोबारा समिति को लौटाया गया। इसके बाद से ही अभी तक यह मूर्त रूप नहीं ले पाया है।
देश भर में जेलों की हालत में सुधार लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2019 में सभी राज्यों को वर्षों पुराने जेल मैन्युअल के स्थान पर नया जेल मैन्युअल बनाने को कहा था। इसके लिए केंद्र का मैन्युअल भी जारी किया गया। केंद्र सरकार द्वारा जारी मैन्युअल में कैदियों की सुविधाओं, विशेषकर स्वास्थ्य आदि पर काफी फोकस किया है। यह भी स्पष्ट किया गया है कि बैरक में कितने कैदी रहेंगे और इन्हें क्या सुविधा दी जाएगी। इसमें कैदियों की पढ़ाई के साथ ही स्वरोजगार परक शिक्षा पर जोर दिया गया है। कहा गया कि राज्य अपनी स्थिति के हिसाब से इसमें कुछ आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं। इस कड़ी में उत्तराखंड में भी इसके लिए तैयारियां शुरू की गईं और तत्कालीन सचिव गृह की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस समिति में अपर सचिव न्याय और महानिरीक्षक जेल को शामिल किया गया। इस समिति का काम केंद्र के मैन्युअल का अध्ययन कर प्रदेश का अपना अलग मैन्युअल बनाना था।
दरअसल, उत्तराखंड में अभी तक वर्षों पुराने जेल मैन्युअल के मुताबिक ही काम चल रहा है। यहां जेलों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। उत्तराखंड में 13 जेल हैं, जिनकी कैदी रखने की क्षमता तकरीबन 3500 है। इसके सापेक्ष जेलों में पांच हजार से अधिक कैदी रखे गए हैं, जिन्हें पूरी सुविधा नहीं मिल पा रही है।
जेल मैन्युअल बनाने के लिए गठित समिति ने मैन्युअल पर काम करना शुरू कर दिया था। इस बीच वर्ष 2020 में कोरोना ने दस्तक दी और लाकडाउन लग गया। 2021 में इस पर फिर से काम शुरू होना था लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के कारण फिर बात आगे नहीं बढ़ पाई। अब सचिव गृह व महानिरीक्षक जेल समेत समिति में शामिल सदस्य बदल चुके हैं। राज्य में चुनाव की आचार संहिता के कारण काम रुके हुए हैं। इस कारण यह मैन्युअल अब नई सरकार के आने पर ही लागू हो सकेगा।