
पिथौरागढ़। सीमांत जिले में मधुमक्खियों के लिए च्यूरा (बटर ट्री) शहद तैयार करने का सबसे बेहतर जरिया है। च्यूरा से तैयार किया गया शहद औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण अधिक गुणकारी माना जाता है। मौनपालक मधुमक्खियों के बक्सों को च्यूरा के जंगलों में रखकर शहद और रॉयल जैली से अच्छी आमदनी कर सकते हैं। इसके लिए कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के विशेषज्ञ किसानों मौनपालन का प्रशिक्षण देंगे।
कुमाऊं मंडल में च्यूरा के सबसे अधिक पेड़ पिथौरागढ़ जिले में पाये जाते हैं। च्यूरा का वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा बुटीरैशिया है। घाटी वाले क्षेत्रों में बहुतायत होने वाला च्यूरा तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक पाया जाता है। करीब 12 से 21 मीटर की ऊंचाई वाले च्यूरा के फलों से घी, शहद, गुड़, मोम तैयार किया जाता है। च्यूरे की गुठली से घी तैयार होने के कारण अंग्रेजों ने इसका नाम इंडियन बटर ट्री रख दिया था। तीक्ष्ण गंध वाले इसके फूलों में अन्य फूलों की अपेक्षा अधिक रस मिलने से मधुमक्खियां च्यूरे की ओर अधिक आकर्षित होती हैं। च्यूरे के फूल खिलने वाले सीजन में मधुमक्खियां सामान्य दिनों की अपेक्षा अधिक शहद और रॉयल जैली उत्पादित करती हैं।
केवीके पिथौरागढ़ के पादप सुरक्षा वैज्ञानिक डॉ. महेंद्र सिंह ने बताया कि पहाड़ी भूभागों में च्यूरा के फूलों से मधुमक्खियां शहद तैयार करती हैं, जो औषधीय गुणों से भरपूर है। मौनपालक च्यूरा के जंगलों में मधुमक्खियों के बक्से रख कर शहद एवं रॉयल जैली उत्पादन से अच्छी आमदनी कर सकते हैं। डॉ. महेंद्र ने बताया कि मौनपालन किसानों के लिए लाभकारी व्यवसाय है और युवा वर्ग मौनपालन में स्वरोजगार कर आय बढ़ा सकते हैं। इसके जरिये पहाड़ से मैदानी क्षेत्रों के लिए हो रहे पलायन को भी रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि औद्योगिक बाजारों में शहद की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। मौनपालक केवल शहद ही नहीं बल्कि मोम और रॉयल जैली भी बाजार में बेच सकेंगे। इसके लिए केवीके किसानों को मौनपालन का प्रशिक्षण देगा।