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हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार पर लगाया दस हजार का जुर्माना

नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने श्रीनगर गढ़वाल के कांडा रामपुर में लगाये जा रहे अलकनंदा स्टोन क्रेशर के परिपेक्ष्य में स्टोन क्रेशर नीति को लेकर पूछे गये सवाल के जवाब का अंतिम अवसर खत्म होने के बाद भी नहीं मिलने पर प्रदेश सरकार पर 10000 रुपये का जुर्माना लगाया है।

मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की युगलपीठ ने श्रीनगर फरासू निवासी नरेन्द्र सिंह सेंधवाल की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए यह कदम उठाया है।

दरअसल याचिकाकर्ता की ओर से ग्रामीणों के विरोध के बावजूद गांव में लगाये जा रहे अलकनंदा स्टोन क्रेशर के मामले को जनहित याचिका के माध्यम से चुनौती दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया है कि मानकों के विपरीत लगाये जा रहे स्टोन क्रेशर से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है। परंपरागत पेयजल स्रोत नष्ट हो रहे हैं और प्रसिद्ध गौरा देवी एवं राज राजेश्वरी मंदिरों के अस्तित्व को खतरा हो गया है।

इसी बीच सुनवाई के दौरान पीसीबी की ओर से अदालत को बताया गया कि स्टोन क्रेशर की स्थापना को लेकर बनायी गयी नीति में संयुक्त सर्वेक्षण टीम में पीसीबी को शामिल नहीं किया गया है।

इसके बाद अदालत ने इस मामले में सरकार से जवाब मांगा। अदालत की ओर से सरकार को जवाब पेश करने के लिये तीन-तीन अवसर प्रदान किये गये। इसी साल जुलाई में अंतिम अवसर प्रदान किया गया लेकिन सरकार की ओर से जवाब पेश नहीं किया गया।

आज भी याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि सरकार की ओर से जवाब पेश नहीं किया गया है। इसके बाद अदालत ने इसे गंभीरता से लेते हुए सरकार पर 10000 रुपये का जुर्माना लगा दिया और जवाब पेश करने के लिये एक और अवसर प्रदान किया है।

अदालत ने हालांकि, अलकनंदा स्टोन क्रेशर के संचालन पर रोक लगा रखी है।

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