
भारत में अब तक इस तरह का उदाहरण देखने को नहीं मिला है. बड़ी टेक कंपनियां भारत में भी अपना एकाधिकार बना कर रखती हैं, लेकिन अमेरिका की तरह यहां इन कंपनियों पर ज्यादा सख्ती नहीं दिखती है. बहरहाल अब ऐसा लग रहा है कि इन कंपनियों पर कुछ हद तक शिकंजा कसा जा सकता है.
भारत में रेवेन्यू शेयरिंग को लेकर गूगल पर पिछले कुछ समय से आरोप लग रहे हैं. खास तौर पर बड़े पब्लिकेशन की तरफ से ये आरोप लगाए जाते हैं कि रेवेन्यू शेयरिंग का मॉडल सही नहीं है और इससे गूगल का फायदा हो रहा है, जबकि इन कंपनियों का नुकसान हो रहा है. इनमें मुख्य रूप से मीडिया हाउसेज शामिल हैं.
गूगल और दूसरी टेक कंपनियों के एकाधिकार खत्म करने के लिए भारत सरकार प्लान तैयार कर रही है. विभिन्न न्यूज पेपर और टीवी चैनल्स गूगल और दूसरे बड़े टेक फर्म की अनुचित और एकतरफा प्रैक्टिस का विरोध कर रहे हैं. माना जा रहा है कि सरकार एक एकतरफा प्रैक्टिस को खत्म करने के लिए प्लान कर रही है.
प्रपोज्ड प्लान के बाद बड़ी टेक कंपनियों और भारतीय मीडिया के बीच विभिन्न रेवेन्यू शेयरिंग एग्रीमेंट्स में निष्पक्षता आएगी. सरकार के साथ बातचीत में इन मीडिया हाउस के प्रतिनिधियों ने गूगल पर कई आरोप लगाए हैं. उन्होंने बताया है कि गूगल अपने पैसे, टेक्नोलॉजी और स्थान का गलत इस्तेमाल करता है. जबकि इसके खिलाफ उन लोगों के पास कोई पावर नहीं है.
आपको बता दें कि सर्च इंजन मार्केट में गूगल के पास एक बड़ा हिस्सा है और इन मार्केट में उसका दबदबा है. साल 2012 के Matrimony.com Limited vs Google LLC & Ors केस में Competition Commission of India ने कहा था कि ऑनलाइन जनरल वेब सर्च मार्केट में गूगल का दबदबा है.
कमिशन गूगल पर एंटी-कॉम्पिटिटिव प्रैक्टिस की वजह से 136 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगा चुका है. फरवरी 2022 में CCI ने डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन द्वारा गूगल की शिकायत की जांच का आदेश दिया था. भारतीय मीडिया हाउस इस मामले को MEITY, CCI, TRAI और IB मिनिस्ट्री समेत विभिन्न फोर्म्स के आगे रख चुके हैं.
सूत्रों की मानें तो भारतीय लीडरशिप इस मामले में सही दिशा में फैसला ले रही है. सोर्सेस के मुताबिक मीडिया इंडस्ट्री लीडर्स का कहना है कि वह बड़ी टेक कंपनियों या फिर गूगल की ग्रोथ या मौजूदगी के खिलाफ नहीं हैं. बल्कि वह केवल अनुचित बिजनेस प्रैक्टिस का विरोध कर रहे हैं. बड़ी टेक कंपनियों की मोनोपोली का यह रवैया सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है.
यह दिक्कत दुनियाभर में है और दिग्गज टेक कंपनियों के कथित मनमानी के खिलाफ एक ग्लोबल लड़ाई चल रही है. इस तरह की प्रैक्टिस का शिकार कई देशों की न्यूज इस्टैब्लिशमेंट इंडस्ट्री हो चुकी है. जैसे-जैसे ये प्रैक्टिस सामने आती जा रही है देशों ने इनसे निपटने का तरीका खोजना शुरू कर दिया है. कानूनी कार्रवाई या फिर जुर्माना लगाकर इन कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करने की कोशिश हो रही है.
फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया ने इसके लिए विशेष कानून इंट्रोड्यूश किया है, जिससे घरेलू न्यूज पब्लिशर को मदद मिल सके. वहीं कनाडा ने एक बिल टेबल किया है, जिसमें गूगल के दबदबे को खत्म करने और फेयर रेवेन्यू शेयरिंग नेगोशिएशन की बात कही गई है.