
उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्लोबल वॉर्मिंग का असर साफ दिखाई दे रहा है. गोमुख के ग्लेशियर पिघलने से मलबा तपोवन का रास्ते पर पट गया है, तो विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी में इस बार रंग और खुशबू अभी तक बिखर नहीं सकी है. इस समय तक आम तौर से यहां 50 से अधिक प्रजाति के फूल खिल जाते थे, लेकिन इस बार केवल एक दर्जन प्रजातियों के फूल ही खिल सके हैं. 1 जून को फूलों की घाटी सैलानियों के लिए खोली गई थी, लेकिन बेमौसम बरसात और कम बारिश से यहां फूलों के खिलने पर ग्रहण लग गया है.
फूलों की घाटी में 500 से अधिक देशी और विदेशी प्रजाति के फूल खिलते हैं. लेकिन इस बार घाटी में अब तक करीब दर्जन भर प्रजातियों के फूल ही बमुश्किल नज़र आ रहे हैं. इनमें प्रीमूला, पोटेंटीला, वाइल्ड रोज, सूरजमुखी व लिली कोबरा आदि के रंग बिखरे हैं.
वन विभाग द्वारा सैलानियों को फूलों की घाटी का दीदार कराया जा रहा है और यहां अब तक 900 से अधिक पर्यटक पहुंच चुके हैं. विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी का पीक टाइम 15 जुलाई से 31 अगस्त के बीच होता है लेकिन पहले के कुछ सालों की तुलना में इस बार फूलों की घाटी में कम फूल खिलना चिंताजनक है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि जैसे ही बरसात होगी, एक बार फिर फूलों की घाटी रंग बिरंगी हो जाएगी. अभी सबको बरसात का इंतजार है, तो वहीं उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती गर्मी भी चिंताजनक है. समय पर बारिश न होने से नदी नाले बेहाल हैं, तो गर्मी से हिमालयी क्षेत्रों में तेज़ी के साथ ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इधर, गोमुख के ग्लेशियर को लेकर भी चिंता बढ़ रही है.