
कोरोना काल में नौकरी जाने की…. आर्थिक हालात खराब होने की… और मुसीबत की बात ज्यादा हो रही है। कोरोना महामारी पूरे विश्व के लिए एक चुनौती है लेकिन हमें उसका मुकाबला करना होगा। इस मुश्किल घड़ी में दूसरे राज्यों से लोग अपने घर पहुंचे.. कहने को इस बात को 6-7 महीने बीत गए लेकिन जख्म हरें है… वो तस्वीरे भुलाई नहीं जाती है। इन्ही में से कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने घर पहुंचकर अपने आसपास संसाधनों को देखा।
दूसरे राज्यों से लौटे तमाम ऐसे लोग हैं जिन्होंने पहाड़ पहुंचने के बाद अपना काम शुरू किया और आज वह गर्व के साथ अपने फैसले से खुश हैं। खास बात ये हैं कि वो अपने साथ स्थानीय लोगों को रोजगार दे रहे हैं। इसके साथ-साथ स्वरोजगार के लिए दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं। उत्तराखंड पलायन की मार से बचने के लिए रिवर्स पलायन का सपना देख रहा है और कुछ हद तक कोरोना ने किया है।
आज हमारे पास नैनीताल के बेतालघाट के दो सगे भाइयों की कहानी है। श्यामसुंदर और जीवन जो एक दूसरे की ताकत बनकर पूरे राज्य में मिसाल पैदा कर रहे हैं। श्याम लॉकडाउन के पहले चंडीगढ़ में थे। वह किसी कंपनी में अकाउंटेंट थे और 12 साल से चंडीगढ़ में रह रहे थे। कोरोना ने नौकरी छिनी तो नैनीताल पहुंचे और चप्पल बनाने का काम शुरू किया। वहीं छोटा भाई जीवन जो पशुपालन क्षेत्र और एलईडी बल्ब बनाने का काम कर रहे हैं।
उत्तराखंड में चल रही स्वरोजगार की मुहिम से श्यामसुंदर काफी खुश हैं। वह कहते हैं कि दूसरे राज्यों में काम करके कुछ नहीं बचता है। पिछले 12 वर्षों से वह चंडीगढ़ में अकाउंटेंट की नौकरी कर रहे थे और यह खुद अनुभव किया है। गांव पहुंचने के बाद रोजगार एक बड़ी चुनौती थी लेकिन उन्हें अपने ऊपर विश्वास था। उन्होंने चप्पल बनाने का व्यवसाय शुरू किया जिसे अब पहचान मिलने लगी है।
उनके छोटे भाई जीवन भी बड़े भाई की बात से सहमत दिखे। उन्होंने कहा कि वह पशुपालन विभाग में काम करने के साथ ही एलईडी बल्ब की बनाते हैं। उनका कहना है कि वह एलईडी बल्ब बनाने के लिए नौकरी से वक्त निकालते हैं। युवाओं के लिए रोजगार पाने के लिए यह अच्छा विकल्प हैं। पिता गोपाल सिंह अपने दोनों बच्चों को अपने गांव में काम करता देख खुश हैं। वह कहते हैं कि बच्चे स्वरोजगार कर रहे हैं। गांव के बच्चों को युवाओं को रोजगार मिल रहा है। राज्य सरकार को इस तरह का काम कर रहे युवाओं को मदद करनी चाहिए।