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सरकारों की उपेक्षा का दंश झेल रहा है अल्मोड़ा का भातखंडे संगीत महाविद्यालय

अल्मोड़ा: भारतीय शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं की शिक्षा देने के लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश के शासन काल में वर्ष 1988 में सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में भातखंडे संगीत महाविद्यालय की नींव रखी गई। जो उत्तराखंड बनने के बाद से यहां की सरकारों की उपेक्षा का शिकार बन कर रह गई। सरकारों ने इस महाविद्यालय को अपना भवन तो दे दिया लेकिन न तो यहां विशेषज्ञ प्राध्यापकों की भर्ती की और न ही कर्मचारियों को नियुक्त किया। हैरत की बात है कि वर्तमान में महाविद्यालय के पास न तो स्थायी प्राध्यापक हैं और न ही प्रधानाचार्य। संग्रहालय प्रभारी को प्रभार देकर संगीत महाविद्यालय का संचालन कराया जा रहा है।

संगीत महाविद्यालय में स्वीकृत 29 पदों के सापेक्ष केवल आठ पदों पर कर्मचारी कार्यरत हैं। जिनमें से तीन अनुसेवक, एक कनिष्ठ कत्थक प्रवक्ता, एक कनिष्ठ भरतनाट्यम प्रवक्ता, दो तबला संगतकर्ता हैं। एक वरिष्ठ सहायक को नैनीताल से संबद्ध किया गया है। आउटसोर्स के माध्यम से सात लोगों को रखा गया है।

संगीत प्रेमियों का कहना है कि 33 वर्षो में इस विद्यालय में तबला, लोक संगीत आदि की फैकल्टी खुल जानी चाहिए थी। लेकिन शिक्षा के मंदिर को केवल जुगाड़ की व्यवस्था से चलाया जाना उसका अपमान है।

इस विद्यालय के खुलने पर उम्मीद जगी थी कि संगीत में रुचि रखने वाले प्रतिभान बच्चों को भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा मिलेगी और वह अपनी संस्कृति को बढ़ाएंगे। राज्य बनने से पूर्व महाविद्यालय में पर्याप्त घरानेदार प्राध्यापक रहे। वर्तमान में महाविद्यालय में घरानेदार शिक्षक नहीं हैं। जनप्रतिनिधियों को इस महाविद्यालय के विकास में सोचना चाहिए।

-दीप जोशी, संगीत प्रेमी

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भातखंडे महाविद्यालय में भारतीय शास्त्रीय गायन का प्रवक्ता ही नहीं है। उत्तराखंड बनने से पूर्व में जिन बच्चों ने यहां से शिक्षा ली वह आज अपनी संस्कृति के लिए कार्य कर रहे हैं चाहे वह होली हो या फिर रामलीला का मंचन। इस महाविद्यालय की स्थिति को सुधारना सांस्कृतिक नगरी के लिए आवश्यक है।

-अशोक पांडे, संगीत प्रेमी, एडम्स स्कूल

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संगीत में रुचि रखने वाले अनेक बच्चे गायन के साथ तबला भी सीखना चाहते हैं लेकिन भातखंडे में कोई व्यवस्था नहीं है। अभी तक तबले की फैकल्टी ही नहीं खोली है। ऐसे में कई बच्चे चाहते हुए भी संगीत नहीं सीख पा रहे हैं। सरकार व अधिकारियों को चाहिए कि वह इसकी समुचित व्यवस्था करें।

-राघव पंत, संगीत प्रेमी, बिष्टाकूड़ा अल्मोड़ा

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भातखंडे संगीत महाविद्यालय को उसका भवन दे देने से ही महाविद्यालय के लक्ष्यों की पूर्ति नहीं होती है। उसके लिए जरुरी है कि जिस उद्देश्य से उसे स्थापित किया गया उसकी पूर्ति की जाए और बच्चों को शास्त्रीय संगीत की विभिन्न विधाओं को सिखाया जाए।

-धीरेंद्र पंत, संगीत प्रेमी, रानीधारा

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