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झारखण्ड में 1932 खतियान लागू होते ही 45 लाख लोग हो जाएंगे रिफ्यूजी

झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट ने 43 प्रस्ताव पर मुहर लगाई. जिसमें राज्य की नियुक्तियों में ओबीसी को 27% आरक्षण देने और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति करने की बात शामिल है. सरकार ने स्पष्ठ कर दिया कि अब से 1932 का खतियान ही होगी झारखंड की मूलनिवासी की स्थानीयता का पहचान. 1932 के खतियान आधारित नियोजन नीति का विरोध सबसे पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने किया था. पूर्व मुख्यमंत्री ने हेमंत सोरेन की स्थानीय नीति का जमकर विरोध किया था.

1932 आधारित स्थानीय नीति का विरोध करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे सरकार ने आनन-फानन में 1932 क्या खाद्यान्न आधारित स्थानीयता को मान्यता दे दी है. उन्होंने राज्य सरकार को जानकारी देते हुए बताया कि कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न जगहों पर जो अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है वह 1964, 1965 और 1970 में हुआ था. अगर 1932 के खतियान को आधार मानकर स्थानीयता तय की जाएगी तो कोल्हान प्रमंडल के 45 लाख लोग, स्थानीयता का लाभ लेने से वंचित रह जाएंगे.

45 लाख लोग अपने ही राज्य में हो जाएगें रिफ्यूजी

1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार बनाने से पूरे कोल्हान प्रमंडल के करीब 45 लाख लोग अघोषित रूप से अपने ही राज्य में रिफ्यूजी हो जाएगें, इसलिए राज्य सरकार को इस स्थानीय नीति पर पुर्नविचार करना चाहिए. राज्य के स्थानीय लोगों को उनका अधिकार मिल सके. इसके लिए स्थानीय नीति निर्धारण बेहद जरूरी है पर वह स्थानीय नीति ऐसी हो जिससे यहां के कोई मूल निवासी लाभ लेने से वंचित न रह जाए.

नीति निर्धारण करना आसान नहीं

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता मधु कोड़ा ने कहा कि अगर सरकार 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति में संशोधन नहीं करेगी तो पूरे कोल्हान प्रमंडल से 1932 के खतियान और राज्य सरकार के खिलाफ उलगुलान शुरू होगा. कुल मिलाकर कहे तो राज्य सरकार के लिए 1932 का खतियान आधारित स्थानीय नीति निर्धारण करना टेढ़ी खीर बना हुआ है. पूर्व में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के द्वारा 2032 आधारित खतियान को लागू करने की सिफारिश की गई थी. जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. अब देखना है कि फिर इस बार स्थानीय नीति लागू होती है या फिर रद्द?

 

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