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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सहित 44 माननीयों ने नहीं दिया संपत्ति का ब्यौरा

देहरादून: उत्तराखंड में भ्रष्टाचार नियंत्रण व पारदर्शिता पर कितने ही बडे़-बड़े दावे किये जा रहे हों लेकिन हकीकत में इसके लिये बने कानूनों का माननीय ही पालन नहीं कर रहे हैं. उत्तराखंड के 71 विधायकों में से मुख्यमंत्री सहित 44 विधायकों ने अपना संपत्ति विवरण ही विधानसभा को नहीं दिया है. यह खुलासा सूचना अधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन को विधानसभा के लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध करायी गयी सूचना से हुआ है. हालांकि, माननीयों को विधानसभा में अपनी संपत्ति का ब्यौरा हर साल देना जरूरी होता है.

नदीम को मिली जानकारी के मुताबिक, इस बार विधायक बनने के बाद संपत्ति विवरण न देने वाले विधायकों की सूची में 44 विधायकों के नाम शामिल हैं. इसमें 7 मंत्रियों और नेता प्रतिपक्ष का नाम भी शामिल है. सूची में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मंत्री सुबोध उनियाल, अरविन्द पांडे, रेखा आर्य, बंशीधर भगत, यतीश्वरानन्द व बिशन सिंह चुफाल के नाम शामिल हैं. इसके अतिरिक्त नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह का नाम भी इस सूची में शामिल हैं.

इसके अलावा 20 विधायक ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपनी संपत्ति का प्रथम अनुसूची का विवरण तो दिया है लेकिन द्वितीय अनुसूची का संपत्ति अर्जन और व्ययन का वार्षिक विवरण नहीं दिया है. इन विधायकों में प्रेमचन्द्र अग्रवाल, केदार सिंह रावत, गणेश जोशी, बलवंत सिंह भौर्याल, सतपाल महाराज, विनोद चमोली, हरभजन सिंह चीमा, खजान दास, धन सिंह रावत, चन्दन राम दास, भरत सिंह चौधरी, मदन कौशिक, महेंद्र भट्ट, पूरन सिंह फर्त्याल, कैलाश चन्द्र गहतोड़ी, यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह पंवार, रघुनाथ सिंह चौहान, संजीव आर्य, हरक सिंह रावत शामिल हैं.

नदीम ने बताया कि उत्तरप्रदेश मंत्री और विधायक (आस्तियों तथा दायित्वों का प्रकाशन) अधिनियम 1975 की धारा 3 के अनुसार मंत्रियों और विधायकों का नियुक्त या निर्वाचित होने के तीन माह के अंदर विधानसभा सचिव को अपनी संपत्ति दायित्वों का विवरण देने का कर्तव्य है. इसके बाद धारा 4 के अनुसार हर साल 30 जून तक पूर्व वर्ष की संपत्ति प्राप्ति, खर्च व दायित्वों का विवरण देना होता है, जिसे गजट में आम जनता की सूचना के लिये प्रकाशित किया जाना आवश्यक है. उत्तराखंड गठन से ही बड़ी संख्या में विधायक व मंत्री इस कानून का पालन नहीं कर रहे हैं, जबकि पारदर्शिता तथा भ्रष्टाचार नियंत्रण के लिये ऐसा किया जाना जनहित में आवश्यक है.

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