
राज्य निर्माण की लड़ाई निजी स्वार्थ से परे होकर पहाड़ी राज्य की मूल अवधारणा को साकार करने के लिए लड़ी गई। इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है, जो कभी सरकारी सम्मान के लिए लालायित नहीं रहे। मगर, अब ऐसे प्रकरण भी सामने आ रहे हैं, जिनमें कई व्यक्ति फर्जी दस्तावेज लगाकर आंदोलनकारी का दर्जा पाने की जुगत में हैं। उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी चिह्नीकरण समिति ने ऐसे 200 आवेदन पकड़े हैं।
राज्य आंदोलनकारी की सूची में नाम दर्ज कराने के लिए जिला प्रशासन ने आवेदन मांगे थे। अब अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) डा. एसके बरनवाल की अध्यक्षता में समिति इन आवेदनों की जांच कर रही है। अपर जिलाधिकारी ने बताया कि 200 आवेदन ऐसे पाए गए हैं, जिनमें भ्रामक दस्तावेज लगाए गए।
विशेषकर पुराने अखबारों की कटिंग लगाई गई है। कटिंग में भी संबंधित ने अपने नाम का स्टीकर चिपकाकर उसकी फोटोकापी कराई है, जिससे यह पता न लगे कि आवेदनकर्ता ने बाद में अपना नाम दर्ज किया है। राज्य आंदोलनकारी की सूची में नाम दर्ज कराने के लिए समिति को करीब 500 आवेदन प्राप्त हुए हैं। अभी भी कुछ आवेदनों की जांच शेष है।
प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए समिति ने फर्जी दस्तावेज जमा करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध विधिक कार्रवाई की संस्तुति की है। लिहाजा, जिलाधिकारी ने फर्जी आवेदन वाले नामों की सूची वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) को भेज दी है। स्क्रूटनी बैठक में अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डा. दिनेश चौहान, उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी चिह्नीकरण समिति के सदस्य विवेकानंद खंडूड़ी, सुशीला बलूनी, ओमी उनियाल, सरोज डिमरी, उर्मिला शर्मा, जितेंद्र अंथवाल, डीएस गुसाईं, देवी गोदियाल मौजूद रहे।
अपर जिलाधिकारी डा. एसके बरनवाल ने बताया कि राज्य आंदोलनकारी के रूप में चिह्नित किए जाने के लिए समाचार पत्रों के अभिलेख मान्य नहीं हैं। आवेदन के साथ विभिन्न प्रकार के शपत्र पत्र और आंदोलन के दौरान पुलिस की ओर से की गई कार्रवाई संबंधी अभिलेख जमा किए जा सकते हैं।